मेरी पसंदीदा रचनाओं की श्रृंखला में महादेवी वर्मा जी की यह रचना भी है जो कि मुझे पूरी तरह कंठस्थ है, कृपया इस रचना की एक -एक जीवंत लाइनों को फिर पढ़ें और देखें यह जीवन के प्रति कितना सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाने के आग्रह के साथ आशा का संचार करती है-------------------------------
चिर सजग आँखें उनींदी आज कैसा व्यस्त बाना!
जाग तुझको दूर जाना!
अचल हिमगिरि के हॄदय में आज चाहे कम्प हो ले!
या प्रलय के आँसुओं में मौन अलसित व्योम रो ले;
आज पी आलोक को ड़ोले तिमिर की घोर छाया
जाग या विद्युत शिखाओं में निठुर तूफान बोले!
पर तुझे है नाश पथ पर चिन्ह अपने छोड़ आना!
जाग तुझको दूर जाना!
बाँध लेंगे क्या तुझे यह मोम के बंधन सजीले?
पंथ की बाधा बनेंगे तितलियों के पर रंगीले?
विश्व का क्रंदन भुला देगी मधुप की मधुर गुनगुन,
क्या डुबो देंगे तुझे यह फूल दे दल ओस गीले?
तू न अपनी छाँह को अपने लिये कारा बनाना!
जाग तुझको दूर जाना!
वज्र का उर एक छोटे अश्रु कण में धो गलाया,
दे किसे जीवन-सुधा दो घँट मदिरा माँग लाया!
सो गई आँधी मलय की बात का उपधान ले क्या?
विश्व का अभिशाप क्या अब नींद बनकर पास आया?
अमरता सुत चाहता क्यों मृत्यु को उर में बसाना?
जाग तुझको दूर जाना!
कह न ठंढी साँस में अब भूल वह जलती कहानी,
आग हो उर में तभी दृग में सजेगा आज पानी;
हार भी तेरी बनेगी माननी जय की पताका,
राख क्षणिक पतंग की है अमर दीपक की निशानी!
है तुझे अंगार-शय्या पर मृदुल कलियां बिछाना!
जाग तुझको दूर जाना!
(महादेवी वर्मा)
यह रचना मुझे भी बहुत पसंद है .शुक्रिया इसको यहाँ पढवाने के लिए
ReplyDeleteये रचना शायद सब को ही पसंद है धन्यवाद और लोहडी की शुभकामनायें
ReplyDeleteएक कालजयी रचना, जब भी पढो, नई जैसी लगे।
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अपना ब्लॉग सबसे बढ़िया, बाकी चूल्हे-भाड़ में।
ब्लॉगिंग की ताकत को Science Reporter ने भी स्वीकारा।
धन्यवाद और लोहडी की शुभकामनायें....
ReplyDeleteमहादेवी की बहुत सुन्दर रचना पढवाने के लिए आभार-लगता है मेरी और आपकी डायरी की अदला बदली जरूर कभी हो गयी थी -उस डायरी में यह कविता भी ढूंढिए -
ReplyDeleteमैं बनी मधुमास आली ....
बहुत सही कहा इस कविता की हर पंक्ति जीवंतता लिए है.
ReplyDeleteमहादेवी जी कविताओंमें भावों की प्रधानता थी.
बहुत ही अच्छी पसन्द है,आप की.
आप की पसंद की बाकी कविताएँ भी पढ़ीं.
बहुत अच्छा संकलन लगा.
जाग तुझको दूर जाना! --- यही तो है वह जागरण सन्देश जो
ReplyDeleteपराधीन भारत में दिया जा रहा था , प्रसाद के यहाँ भी मिलेगा ,
'' बीती विभावरी जाग री '' ... आभार ,,,
@शुक्रिया तनु ,अब नियमित भी होईये!
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