Sunday, January 10, 2010

मेरी पसंद -------------

यह रचना बचपन से मेरे साथ है ,मुझे मेरे पाठशाला के पंडित जी नें इसे रटाया था जो आज भी मुझे कंठस्थ है
डॉ राम कुमार वर्मा जी की इस रचना से मुझे बहुत प्रेरणा मिलती है--------------------------

एक दीपक किरण-कण हूँ.
धूम्र जिसके क्रोड में है, उस अनल का हाथ हूँ मैं
नव प्रभा लेकर चला हूँ, पर जलन के साथ हूँ मैं
सिद्धि पाकर भी, तुम्हारी साधना का -
ज्वलित क्षण हूँ.
एक दीपक किरण-कण हूँ.

व्योम के उर में, अपार भरा हुआ है जो अंधेरा
और जिसने विश्व को, दो बार क्या, सौ बार घेरा
उस तिमिर का नाश करने के लिए, -
मैं अटल प्रण हूँ.
एक दीपक किरण-कण हूँ.

शलभ को अमरत्व देकर, प्रेम पर मरना सिखाया
सूर्य का संदेश लेकर, रात्रि के उर में समाया
पर तुम्हारा स्नेह खोकर भी, -
तुम्हारी ही शरण हूँ.
एक दीपक किरण-कण हूँ.

6 comments:

  1. आभार इस रचना को यहाँ प्रस्तुत करने का....डॉ राम कुमार वर्मा जी की रचना वाकई प्रेरणादायी है.

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  2. सुंदर रचना पढ़वाने के लिए आभार.

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  3. यह रचना पहली बार पढ़ रहा हूँ ..
    सुन्दर कविता है ..
    @ शलभ को अमरत्व देकर, प्रेम पर मरना सिखाया

    ---------- कुछ यूँ ही गुफ्तगू मैथिलीशरण गुप्त जी के यहाँ है , जहाँ
    कहा गया है ...
    '' दोनों ओर प्रेम पलता है ..
    सखि ! पतंग भी जलता है
    हा ! दीपक भी जलता है ..
    .
    .
    दीपक के जलने में आली
    छिपी हुई जीवन की लाली .. ''
    ............. आभार ,,,

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  4. ऐसा क्यूं लगता है कि आप कोई रहस्यमयी या मेरे घर की सदस्य हैं -अब ये भी मेरी अत्यंत प्रिय कविताओं में से है जिन्हें मैं सस्वर सुनाता रहा हूँ ? आखिर कौन हैं आप ?

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  5. @तनु मुझे कुछ संशोधन सा लगे है -ज़रा मूल कही मिले तो मिलान कीजिये -
    पहला स्टेन्जा -तपस्या साधना
    दूसरा -अखिल प्रण
    तीसरा -स्नेह पाकर
    मुझे भी बताएं !

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  6. @ arvind sir ,meree jaankaaree men to yhee hai,ho sakta hai aap shee ho.maine ise bchpn me kbhee yaad kiya tha.mool kvita mere pas nhee hai.

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