Thursday, July 30, 2009

जागो फ़िर से....

जागो एक बार फ़िर से
झुको एक बार फ़िर से
जायेंगे वो भी हट कर
जो जुडोगे एक बार फ़िर से .

सो गये हैं लोग ,सदा कौन करे
मर गयें हैं लोग दुआ कौन करे
अस्मत ही रही यह सोचकर
जीने की चाह कोई क्यूँ करे.

सोच कर देखो तुम्हे कोई
कहता रहा ,मिलता रहा
जीत गये तो वाह-वाह
हार गये तो जीवन सड़ता रहा.
पीर से पर्वत का वास्ता क्यूँ है
जीत से और हार से वास्ता क्यूँ है
क्यूँ समुद्र और चाँद से तुलना होती है,
तुलना करना ही जीवन की नियति क्यूँ है.

Sunday, July 26, 2009

सहज जीवन क्यों नहीं है ?

सहज जीवन क्यों नहीं है ?
क्यों लगे है रोज मरना
घुट-घुटन सा रोज जीना
बात बीती फ़िर भी अक्सर
सहज जीवन क्यों नहीं है ?
एक नई सी भोर ताके
है गगन अब शून्य आख़िर
दिवस का अवसान क्यों फ़िर
सहज जीवन क्यों नहीं है ?
दृष्टी बाधित ,तप है निष्फल
द्रोपदी है, फ़िर हुई बिह्वल
सत्य की जय रहे हरदम
फ़िर सहज जीवन क्यों नहीं है ?

Wednesday, July 15, 2009

क्या किया जाए........

हो रहें हैं लोग पागल
अब क्या किया जाए
चलना-फिरना ,डूब मरना
हो गयी है फितरत या
आज का दौर ही है
क्या किया जाए
रोना-धोना या फ़िर सिसकना
हुई पुरानी या
फ़िर नई बात
क्या किया जाए .................

Friday, July 10, 2009

तेरा साथ

क्यों नही मिला मुझे
तेरा साथ
क्यों मुझे रोकती रहीं
परिवारिक बेडियाँ
क्या कभी होगा
हमारा -तुम्हारा मिलन
कब -कब और कब .

Thursday, July 9, 2009

मेरी सूनी आंखों में..

मेरी सूनी आंखों में
कभी कोई सपना भी आएगा
क्या कभी मेरे जीवन में
सपनों का सौदागर भी आएगा
चार दिन की जिन्दगी में
फ़िर कोई इसकी अवधि भी बढाने आएगा
या फ़िर इसी तरह मैं
सूने सपनों की तलाश करती
सो जाउंगी सदा के लिए .

Tuesday, July 7, 2009

हम -तुम

हम -तुम
क्यों आज दूर हैं
क्यों नहीं रही जुम्बिश
कैसे चलेंगे जीवन पथ पर
हम और तुम
सूने हुए सपनें
क्यों हम रह गये
क्यों रम गये
जमाने की चालों में
हम-तुम
कैसे पूरे करेंगे
वे सपनें
जिन्हें हमनें
देखा था कभी
आंचल की छाव में
हम-तुम
कैसे जियेंगे
अपने वजूद के बिना
हम और तुम .