जागो एक बार फ़िर से
न झुको एक बार फ़िर से
आ जायेंगे वो भी हट कर
जो जुडोगे एक बार फ़िर से .
सो गये हैं लोग ,सदा कौन करे
मर गयें हैं लोग दुआ कौन करे
अस्मत ही न रही यह सोचकर
जीने की चाह कोई क्यूँ करे.
सोच कर देखो तुम्हे कोई
कहता रहा ,मिलता रहा
जीत गये तो वाह-वाह
हार गये तो जीवन सड़ता रहा.
पीर से पर्वत का वास्ता क्यूँ है
जीत से और हार से वास्ता क्यूँ है
क्यूँ समुद्र और चाँद से तुलना होती है,
तुलना करना ही जीवन की नियति क्यूँ है.
न झुको एक बार फ़िर से
आ जायेंगे वो भी हट कर
जो जुडोगे एक बार फ़िर से .
सो गये हैं लोग ,सदा कौन करे
मर गयें हैं लोग दुआ कौन करे
अस्मत ही न रही यह सोचकर
जीने की चाह कोई क्यूँ करे.
सोच कर देखो तुम्हे कोई
कहता रहा ,मिलता रहा
जीत गये तो वाह-वाह
हार गये तो जीवन सड़ता रहा.
पीर से पर्वत का वास्ता क्यूँ है
जीत से और हार से वास्ता क्यूँ है
क्यूँ समुद्र और चाँद से तुलना होती है,
तुलना करना ही जीवन की नियति क्यूँ है.
बहुत अच्छी बात कही आपने इस रचना के माध्यम से
ReplyDeletePahli bar apke blog par aai hoo, par apki abhivyakti aur bhav pahli hi najar men akarshit karte hain...congts.
ReplyDeleteफ्रेण्डशिप-डे की शुभकामनायें. "शब्द-शिखर" पर देखें- ये दोस्ती हम नहीं तोडेंगे !!
तुलना करना ही जीवन की नियति क्यूँ है....
ReplyDeleteबहुत ही महत्वपूर्ण बात कही है .......... पर है तो ऐसा ही ........