मैं तुम्हारी नहीं लेकिन
दृष्टि बाधित नयन क्यों है.
गाल-बजाना फिर फुलाना,
चितवनों का चक्र पल-पल ,
भृकुटी टेढ़ी दर्द क्यों है.
गर नहीं मै तेरी तो फिर ,
आना-जाना और ठहरना,
कनखियों से बारी-बारी ,
हाल बेसुध क्यों हुआ है।
मैं तुम्हारी नहीं लेकिन................................
बहुत अच्छी लगी यह कविता...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर!!
ReplyDeleteनैसर्गिकता पर सवाल भी अजब !
ReplyDeleteचिरन्तन स्नेह की मूक अभिव्यक्ति
ReplyDeleteशब्दों का खूबसूरत प्रयोग करती है आप ..भाव भी गहरे है ..और खूबसूरत सृंगार कर सकती है आप यक़ीनन
ReplyDeleteप्रेम को स्वीकार करना भी एक कला है ...... सुंदर रचना .......
ReplyDeleteभावपूर्ण रचना!
ReplyDelete